नई दिल्ली: निजी नौकरी करने वालों के लिए अब ईपीएफ के अलावा एनपीएस में निवेश का विकल्प मिल रहा है। अगर आप प्राइवेट सेक्टर में जाॅब कर रहे हैं और रिटायरमेंट होने के बाद फंड में बढ़ोतरी करना है तो आप किसी विकल्प को चुन सकते हैं। इसके बारे में कोई भी दिक्कत है तो आप एक्सपर्ट की राय ले सकते हैं। इसकी मदद से आपको भविष्य में बड़ा फंड तैयार करने के अलावा टैक्स बचत करने में भी सहायता मिल जाती है।
वेतनभोगी लोगों की बात करें तो वह योजना बनाने के दौरान नेशनल पेंशन स्कीम के अलावा कर्मचारी भविष्य निधि संगठन को पूरी तरह से ध्यान में रख रहे हैं। एनपीएस में कोई भी निवेश कर फायदा ले सकता है। लेकिन ईपीएस बस नौकरी वालों के लिए ही रहता है। नियोक्ता कर्मचारियों को दोनों विकल्प चुनने का मौका मिलता है। फिलहाल एनपीएस की पेश नहीं कर रहे हैं तो उनसे अनुरोध कर सकते हैं कि नियोक्ता योगदान को आपके वेतन का हिस्सा दे सकते हैं।
क्या है दोनों में खास अंतर
एनपीएस के अनुसार कर्मचारियों को नियोक्ता फायदा हासिल करने के लिए योगदान की जरूरत नहीं है। मूल वेतन का 14 प्रतिशत हो सकता है। ईपीएफ की बात करें तो 12 प्रतिशत है। ईपीएफ में नियोक्ता योगदान के साथ कर्मचारी का योगदान जरूरी होता है। वहीं आमतौर पर देखा जाए तो सामान्य राशि 12 फीसदी ही रहता है।
कहां बचा सकते हैं टैक्स
एनपीएस में नियोक्ता का योगदान सैलरी का अहम हिस्सा रहता है। इस पर टैक्स की छूट दी जा रही है। ईपीएफ में नियोक्ता का योगदान अहम माना जाता है। जो सीटीएस का अहम हिस्सा में शामिल है। यदि एनपीएस, ईपीएफ और अन्य सुपरएनीवेशन फंड्स में हर साल 7.5 लाख रूपये से ज्यादा होता है तो ज्यादा राशि पर आपसे टैक्स वसूला जा रहा है।
किसमें होगी फ्लैक्सिबिलिटी
अगर ईपीएफ और एनपीएस की बात करें तो एनपीएस इस मामले में ज्यादा बेहतर माना जाता है। नौकरी बदलते के दौरान आपको कुछ बातों का खास ध्यान देना होता है। इसमें नियोक्ता की भूमिका खास होती है।