एक ही गोत्र में शादी करनी चाहिए या नहीं, जानें दाम्पत्य जीवन में क्यों आने लगती हैँ समस्याएं!

सनातन धर्म में शादी से पहले कुंडली मिलाने का खास रूप से महत्व दे रखा गया है। कुंडली को मिलाते समय गुण, नाड़ी दोष, गोत्र आदि बातों को खासतौर पर बहुत ही ज्यादा ध्यान में रखा जाता है। कारण है कि वर या वधू को आगे चलकर किसी भी तरह कि कोई समस्या न आए।  हिन्दू धर्म में ये बिलकुल भी मान्य नहीं है कि लड़का या लड़की एक ही गोत्र में विवाह करें। ऐसा करना वर्जित माना जाता है। अब इसके पीछे भी दरअसल कई सारी धार्मिक मान्यताएं हैँ। साथ ही ढेरों वैज्ञानिक वजह भी हैँ। जिसके बारे में आज हम आपको डिटेल में बताएँगे।

जानिए कि सगोत्र या एक ही गोत्र होने का क्या अर्थ है?

• ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक मानें तो लड़का या लड़की का अगर एक ही गोत्र है तो इसका सीधा मतलब है कि उनके पूर्वज भी एक ही थे।

• पूर्वज एक होने के मतलब ये हो गया कि ये कहीं न कहीं भाई – बहन लगते हैँ। ज्योतिष शास्त्र में भी इस बात का  जिक्र है कि सात पीढ़ियों के बाद व्यक्ति का गोत्र बदलता है।

• ऐसे में एक गोत्र में शादी कि जा सकती है, लेकिन आज भी लोग इसे लेकर ढेरों बातें मानते हैँ।

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जान लें कि किन गोत्रों में भूल कार भी विवाह नहीं करना चाहिए:

सनातन धर्म में कुछ ऐसे गोत्र बताए गए हैँ जिनमें शादी करना बिलकुल मना है। शादी करते वक़्त तीन गोत्र ऐसे होते हैँ जिन्हें छोड़ दिया जाता है अर्थात आप इन गोत्र में शादी नहीं कर सकते हैँ। पहला है माता जी का गोत्र, दूसरा पिता का गोत्र, तीसरा दादी का गोत्र बाकी सब में आप विवाह कर सकते हैँ।

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जान लें कि सगोत्र विवाह अगर करते हैँ तो कौन – कौन सी समस्याएं आती हैँ:

सगोत्र विवाह करते हैँ तो आपके जीवन में कई समस्याएं आ सकती हैँ। या तो संतान कि प्राप्ति नहीं होगी या फिर मानसिक सेहत खराब बनी रहेगी। क्योंकि गोत्र अगर एक ही है बौद्धिक विकास तेजी से नहीं हो पाता है।

जानते हैँ कि अगर सगोत्री विवाह फिर भी करना चाहते हैँ तो किन तरीकों से कर सकते हैँ:

• सगोत्र विवाह अगर करते हैँ तो कन्या दान उसके माता व पिता कि जगह घर के किसी और सदस्य से कराना चाहिए।

• आर्य समाज के मंदिर जाकर के विवाह कर सकते हैँ।

• या फिर किसी ब्राह्मण से धार्मिक अनुष्ठान करवाकर, उसी ब्राह्मण को दान देकर, उसका गोत्र अपनाया जा सकता है।