नई दिल्लीः भारतीय सर्राफा बाजारों में इन दिनों चांदी की कीमतें सातवें आसमान पर दर्ज किया जा रही हैं, जिससे आम लोगो की जेब का बजट बिगड़ता जा रहा है। एक ही दिन में चांदी की कीमत करीब 1200 रुपये तक बढ़ गई, जिससे आम लोगों की उम्मीदों को झटका लगा। भारत के आधुनिक समाज में चांदी का बहुत बड़ा महत्व है, क्योंकि हर वर्ग में लोग गिफ्ट के तौर पर चांदी के उपहार के रूप में भई एक दूसरे को दिए जाते हैं।
बेटी की शादी हो या फिर बेटे की सभी में चांदी के गहनों का बड़ा प्रचलन देखने को मिलता है। लोग अपने यार, दोस्त और रिश्तेदारों को गिफ्ट के तौर पर चांदी के सिक्के भी देते हैं। क्या आपको पता है कि भारत में चांदी के सिक्कों को किसने शुरू किया था। अगर नहीं पता तो चिंता ना करें, क्योंकि नीचे तक आर्टिकल पढ़कर आराम से इस बात की जानकारी जुटा सकते हैं, जिससे किसी तरह की दिक्कत नहीं होगी।
किस बादशाह ने शुरू किए थे चांदी के सिक्के
भारत में एक ऐसा बादशाह जिसका नाम शेरशाह सूरी था, जिसने भारत में चांदी के सिक्के चलाने का श्रेय जाता है। इन सिक्कों का जिसने रुपया नाम रखकर देशभर में चलाया। शेरशाह सूरी का जन्म 1486 ईस्वी में बिहार के सासाराम के जागीरदार हसन खान के घर हुए था। उनकी असली नाम फरीद था।
उनके आत्मबल और ताकतवर होने के चलते फरीद को शेर खान नाम से नवाजा गया। इतना ही नहीं जब वे उम्र में बड़े हो गए तो उन्होंने मुगल बादशाह की सेना में अच्छी हैसियत में काम किया। मुगल बादशाह बाबर के साथ सन 1528 में चंदेरी की लड़ाई में भी भाग लिया था।
फिर इसके बाद शेरशाह बिहार में जलाल खान के दरबार में काम करने लगे। इसके बाद बाबर की मौत के उनके बेटे हुमायूं ने बंगाल पर फतह पाने की योजना बनाने का काम किया। इस रास्ते में शेरशाह सूरी का इलाका पड़ता था। इसलिए दोनों की सेनाएं बुरी तरह भिड़ गईं।
शेरशाह की तर्ज पर मुगल बादशाहों ने भी जारी रखे सिक्के
शेरशाह सूरी ने अपना ऐसा नाम कमाया कि उसके द्वारा किए गए कामों का समर्थन मुगल बादशाहों ने भी किया। शेरशाह सूरी के बाद मुगलों के मानक सोने के सिक्के का वजन 170 से 175 ग्रेन के बीच था। उनके द्वारा चलाया गया चांदी का रुपया मुगलों के शासन काल में भी लोगों की पसंद बन गया।