हर साल होली से एक दिन पहले होलिका दहन मनाया जाता है। यह खुशियों और उल्लास का त्योहार है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। जलती हुई होलिका की लपटों में हमारी सारी चिंताएं और दुख जलकर राख हो जाते हैं और मनोकामनाएं पूरी होने का आशीर्वाद मिलता है.

होलिका दहन की पौराणिक कथाएं (Mythological Stories of Holika Dahan)

हिंदू धर्म में होलिका दहन की दो प्रचलित कहानियां हैं। आइए, दोनों को जानें:

1. भक्त प्रह्लाद और होलिका (Devotee Prahlad and Holika)

पहली कथा राजा हिरण्यकश्यप और उनके पुत्र भक्त प्रह्लाद से जुड़ी है। हिरण्यकश्यप अमर होने का वरदान प्राप्त कर मद में चूर था। वह चाहता था कि सभी उसे भगवान मानें। लेकिन उसका बेटा प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था।

हिरण्यकश्यप ने अपने बेटे को मारने की कई कोशिशें कीं, लेकिन हर बार असफल रहा। आखिरकार, उसने अपनी बहन होलिका की मदद ली। होलिका को एक चादर प्राप्त थी जिसे आग छू भी नहीं सकती थी। योजना यह थी कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठ जाएगी।

लेकिन विष्णु की कृपा से होलिका का चमत्कारी वस्त्र प्रह्लाद के ऊपर आ गया और प्रह्लाद बच गया। वहीं, होलिका जलकर राख हो गई। तब से, बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में हर साल होलिका दहन मनाया जाता है।

2. धुंड़ी राक्षसी और होलिका दहन (Demon Dhundi and Holika Dahan)

दूसरी कहानी धुंड़ी नामक राक्षसी से जुड़ी है। यह राक्षसी रघु राज्य में कोहरे के रूप में रहती थी और निर्दोष लोगों, खासकर बच्चों को परेशान करती थी।

धुंड़ी को भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त था, जिसके कारण उसे किसी देवता, मनुष्य या हथियार से कोई खतरा नहीं था। लेकिन उसका एक कमजोर बिंदु भी था। उसे शोर-शराबा और शरारती बच्चों से परेशानी होती थी। एक ज्योतिषी ने राजा को सलाह दी कि फाल्गुन मास में सर्दियां खत्म होकर गर्मी का मौसम शुरू होता है। यह कोहरे को दूर भगाने का सबसे अच्छा समय है

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